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रूपक अलंकार का बहुत उदास उदाहरण / सूरज
Kavita Kosh से
मैं सरो-सामान से लैस सफ़र पर निकला
हर भले आदमी के रेल की तरह मेरी रेल
भी आई, मैने रोटी खाई ठंडा पानी पिया
ख़ुशी की चादर बिछाई, अटूट नींद सोया
इस उम्मीद से कि अगली सुबह मंज़िल
पर हूँगा, मेरा ख़ास सफ़र पूरा हो जाएगा
सुबह हुई और लोग
मेरे हाल पर हँसे
रेल पूरी रात वहीं
उसी स्टेशन पर
खड़ी रह गई थी
वज़हें मौजूद थीं
जो ढूँढ़ ली गईं
तुम्हारे बग़ैर मैं
वही रेल हूँ
मंज़िल से दूर वही
अभागा हूँ
मैं कहीं नहीं पहुँच पाऊँगा
मैं तो जी भी नहीं पाऊँगा
तुम्हारे बग़ैर ।