भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत (17) / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर साल आते हैं
ये पावणे
हजारों मील से
तिलोर, बट्टा, मुर्गाबी
और कुरजां
देखते ही नहीं
अब तो लोग जानते हैं
इनका स्वाद भी।