भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तपती सहती रेत
तड़पती, जलती रहती है
कहती नहीं कुछ
रहती है मौन
होती है बारिश
टूटता है मौन
रेत हो जाती है मुखर
फैलने लगती है उमस
पसीना छूट जाता है
भले-भलों का।