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रैन बसेरा / त्रिलोचन

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परमानन्द 'आनन्द

रात 12 बजे मिले;

शिवकुमार शुक्ल के बुलाने पर

पुरुषोत्तम पान वाले के यहाँ

मैं कुछ पहले बैठा था;

मेरा मुँह सड़क की ओर था

भीतर पान और कोई बात थी

चार-पाँच और लोग

इधर-उधर जगह देखभाल कर जमे थे

चर्चा कुछ पहले से

पाकिस्तान-भारत की चली थी

मुझ से भी किसी एक ने स्वर को ऊँचा कर

औरों का स्वर दबाते हुए

उस पर पूछ दिया;

मुझे देखते पाकर

सड़क से परमानन्द खिंच आए

नमस्कार करके कहा

गुरू जी, चलते हैं रात अधिक जा चुकी

बात पूरी करके मैंने शुक्ल जी से कहा

शुक्ल जी, आज्ञा है

शुक्ल ने संकोच से कहा

आज्ञा और आपको

मैं खड़ा हुआ कि चलूँ

अब परमानन्द को एक नौजवान ने आते ही

शब्दों से पकड़ लिया

दोनों में जान-पहचान थी

उसने परमानन्द से पान का प्रस्ताव किया

परमानन्द ने उसे मेरा परिचय दिया

कहकर यह, हम सबके गुरू हैं

उसने मुझे देखा तो मैंने कहा

मैं तो यही जानता हूँ सब मेरे गुरू हैं

आप एक और हुए


परमानन्द बोले उस युवक से

कहीं कोई कमरा दिलवाओ

उसने पूछा, किराया, मौहल्ला

परमानन्द ने बता दिया

मैंने कहा, युवक को सुनाते हुए

परमानन्द जी, चरित्र का प्रमाण चाहिए

तब शायद कमरा मिले

दोनों ही चरित्र पर खुलकर हँसे

पान नौजवान ने विनिमय से दिए

और हम अलग हुए


परमानन्द बोले, मैं आज बहुत थका हूँ

और कहीं सो जाना चाहता हूँ

मैंने कहा, आप कहाँ सोते हैं

आजकल, बोले, कोई ठीक नहीं

पिछले दो-चार दिनों से मैं

कैलास पर सो जाया करता हूँ

मैंने कहा, कैलास जगह सुनसान है

वहाँ कोई रहता नहीं रात में

वे बोले,

प्रवासी जी कहते थे

तुम वहाँ सोते हो इससे कुछ लोगों को

बाधा पहुँचती है

तुम्हें मार देने की चर्चा मैंने सुनी है

मैंने कहा, यदि ऎसी बात है

कहीं और सोइये

अब बोले, गुरू जी

मैं किसी का क्या लेता हूँ

कहीं सो रहता हूँ

मैंने कहा, परमानन्द जी

किसी दिन पुलिस आपको पकड़े

ऎसे में तो मुश्किल पड़ेगी

बोले, मैं तो केवल सोता हूँ

मैंने कहा, मानेगा कौन बात आपकी

पुलिसवाले

या महेशप्रसाद जिला अधिकारी

या कचहरी

समाचार-पत्रों को एक समाचार

मिल जाएगा

चोर पकड़ा गया

कहते हैं वह कवि है

परमानन्द अपनी जँभाई रोकते हुए

ख़ूब हँसे


बोले, गुरू जी

बहुत थका हूँ

किसी जगह पड़ जाना चाहता हूँ


मैंने पूछा,

आप कहाँ आजकल हैं

बोले एक जूनियर हाई स्कूल में

प्रिंसिपल

मैंने कहा, और फिर भी

आपको मकान नहीं मिलता

परमानन्द तेज़ी से

नाली पर जा बैठे

मैंने चाल कम कर दी

देखा आकाश को

अगल-बगल

एक बन्द फाटक से लगा हुआ

सिकुड़कर कुत्ता एक

बैठा या टिका था

पेट में छिपाए मुँह

सोचा, अब ठण्ड बढ़ गई है


आ गए परमानन्द

बोले आज

सोचता हूँ, मैं उलाव्वाली

धर्मशाला में सो रहूँ

उलाववाली धर्मशाला में

पूछा मैंने और बिना रुके कहा

अभी चार-पाँच दिन पहले की

बात है उलाव कोठी वाला

पिस्तौल लेकर वहाँ जा धमका था

रामविलास थे वहाँ

दाढ़ी वाले सोशलिस्ट

पिस्तौल देख कर

तेजस्वी शब्दों से

काम लिया

आग आगे नहीं बढ़ी

झगड़ा बढ़ते-बढ़ते

किसी तरह शान्त हुआ

अब कैसा हाल है

मुझको मालूम नहीं

परमानन्द ने कहा, गुरूजी,

द्वार लगा रहता है, ताला नहीं लगता

और कोई प्राय: नहीं रहता

आज खाली मिलने पर वहीं सो जाऊंगा

देखिए, मैने कहा

बरगद के पेड़ से एक चिड़िया उड़ गई

दोनों का ध्यान गया, आँखें उठीं उस ओर

पाँव बढ़ा ही किए

धर्मशाला आ गई

परमानन्द ने कहा, गुरू जी, मैं देख लूँ

मैं रुका, धर्मशाला की कुर्सी ऊँची है

परमानन्द ऊपर गए

दरवाज़ा हाथ से दबाते ही खुल गया

अन्दर गए, देखा-भाला होगा

सिर ज़रा बाहर निकाल कर

परमानन्द ने कहा, गुरु जी

यहाँ कोई नहीं है

अब मैं सो रहूंगा, नमस्कार


अब मैं अपने घर या कमरे को

उन्मुख था

कमरा एक और रहने वाले तीन

पत्नी, बच्चा और मैं

चौथे की गुंजाइश यहाँ नहीं

मेरी अनकही चिन्ता

मेरी बिथा बना की