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रैवणगत / हरीश बी० शर्मा

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दबेलदारी
कुण किण री सेवै है
पण उपरलै री बणायोड़ी
ऊंचली-नीचली रैवणगत
बडा-बड़ां री
सगळी आंट भुला देवै
का निकाळ देवै है
ठसक पुरखां री।
बदळाव समै रो।।
जद कोडी रै आदमी
सांमी झुकणौ पड़ै
दबेलदारी
सहन करनी पड़ै।