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रोको वीरन गैल बहिना तुमरी कितै चलीं / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
रोको वीरन गैल बहिना तुमरी कितै चलीं।
आजी नै डारौ है पीसनो तो उड़-उड़ चुन चलीं।
नौआ ने खाये लौंजी पान निबाहन हम चले।
आजुल ने हारे है वचन सो निबाहन हम चले।
घरी घरी सुध लेयं कलेउ की बेर पै।
रोको विरन गैल...
मैया ने डारौ है पीसनो सो चुन-चुन उड़ चलीं।
बाबुल ने हारे हैं वचन सो निबाहन हम चले।
घरी घरी सुध लेय ब्यारी की बेर पै।
रोको विरन गैल बहिना तुम्हारी कितै चली।