भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोज़ बदलता मौसम / इला प्रसाद
Kavita Kosh से
यहां मौसम हर रोज़ बदलता है
और लोगों के मिज़ाज भी ।
एक मौसम इस घर का है
एक मौसम शहर का।
एक मौसम मेरे मन का है
वीतराग ...
सोंचती हूँ
कहीं जो बिठा पाती संगति
इन सबके बीच
तो मेरे मन का मौसम
क्या होता?
वहाँ हरदम शायद
वसंत होता!