भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोज कहता हूँ कहा करता हूँ /कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
रोज कहता हूँ कहा करता हूँ
मानता ख़ुद को अभी बच्चा हूँ।
दिल कहे तब ही पढ़ा करना तुम
मैं सदा दिल की कही लिखता हूँ।
दोष उनका ये नहीं मेरा है
झट से मैं दोस्त बना लेता हूँ।
उनकी आँखों में नहीं पानी है
मैं किसी से भी नहीं लड़ता हूँ।
दुख भरे दिन न कभी छोड़ेंगे
मैं दुखी में भी सुखी रहता हूँ।
सच को जो सच न कहे शायर क्या
मैं अदीबों का जिगर रखता हूँ।