रोमपाद रोॅ प्रार्थना / रोमपाद / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
नवसो माँस नौ साल जकां ही
बितलै अंग-अवध के,
दोनों धामोॅ में उमड़ै छै
बोहोॅ सुख रोॅ नद के।
राम, भरत, शत्रुघ्न संग में
लक्ष्मण के भी ऐबोॅ,
रोमपाद केॅ लागै छै कि
आरो की सुख पैबोॅ।
सोना के संग हीरा-मोती
कोय नै लै छै चानी,
सूपे सूपे खूब लुटाबै
रोमपाद के रानी।
लगै मालिनी धरती पर छै
स्वर्ग देवता-धाम,
यै लेॅ कि अवधोॅ में ऐलै
तीन भाय संग राम।
अंगदेश में चारो दिश ही
पूजा-पाठ, मनौती,
सौंसे धरती नाँची रहली
पिहनी पाट बिहौती।
दामादोॅ लुग आबी राजा
सब भविष्य केॅ जानै,
की होतै, की-की ने होतै
शृंगी मुग्ध बखानै।
जानी समझी रोमपाद तेॅ
हर्षित छै, पुलकित छै,
लगै लहू नै देहोॅ केरोॅ
बहै वहाँ अमरित छै।
कै दिनोॅ सें पूजा पर छै
रोमपाद संग रानी,
अन्न-कौर के बात कहाँ छै
ले लेॅ नै छै पानी।
मन में बस एक्के किंछा छै
”राम भुवन भर रमियोॅ,
अंग-अवध के रिश्ता समझी
अपने घर रं जमियोॅ।
”तोहरोॅ यश-कीर्ति केॅ गावी
सिहरेॅ अंग समूचै
तोरोॅ बिन, केकरो लेॅ भावो
कभियो कहूँ नै रुचै।
”ई दशरथ के एतनै इच्छा
अंग रहेॅ निष्काम,
तीनो लोकोॅ में ही रमियोॅ
हे दशरथ के राम।
”धरती पर वैभव के आबेॅ
बल के बोल चलै छै,
जे अपकर्म, अनीति छिकै जे
ओकरे टोल चलै छै।
”अपने सुख सुविधा में खोजै
अर्थ जम के आबेॅ,
हेना में धरती के दुख की
कभियो कभी नशाबेॅ।
”आपनोॅ सीमा सें बाहर होय
कृत्य करै दानव के,
एकरा सें उद्गार कभी भी
होतै की मानव के?
”नारी के सम्मान नै रहलै
भोग-विलासे भारी,
साधू के मूँहे पर उण्टें
दै छे केन्होॅ गारी।
”तोरे आस लगैनें छेलौं
भुवन, धरा ई धाम,
मेटोॅ आबेॅ भार लोक के
हे दशरथ के राम।“
एक आस विश्वास यही छै
जब तक तोरोॅ ना,
सत् के सदा सहारा मिलतै
हे, दशरथ के राम!
कोय काल आवेॅ कैन्हेंनी
नै होय्यो तोंय वाम,
कलियुग तक आलोकित लागेॅ
हे, दशरथ के राम!
हमरा सब मालूम, मोल की
राखै ताम ई झाम,
तोंही एक सनातन शास्वत
हे, दशरथ के राम!
रमो विश्व में तोर्है में तेॅ
सबके छै विश्राम,
मुक्ति, धर्म सब तोंही ही तेॅ
हे, दशरथ के राम!
कल तक जीवन छेलै सूनोॅ
आय छै ललित, ललाम,
हेने युग ई, युग-युग लागेॅ
हे, दशरथ के राम!
काल-काल के दूर हुएॅ सब
लोभ, मोह, मद, काम,
सकल सृष्टि तोरे सन लागै
हे, दशरथ के राम!