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रोम-रोम में सावन मुसकाने लगा / धनंजय सिंह

तुमने मेरे मन को ऐसे छू दिया
गानवती ज्यो कोई छू दे , सोये हुए सितार को
गूंगा मन जय-जयवंती गाने लगा ।

जाने क्या था
ढाई आखर नाम में
गति ने जन्म ले लिया
पूर्ण विराम में

रोम-रोम में सावन मुसकाने लगा ।

खुली हँसी के
ऐसे जटिल मुहावरे
कूट पद्य जिनके आगे
पानी भरे

प्रहेलिका-संकेतक भटकाने लगा ।

बिम्ब-प्रतीक न जिसका
चित्रण कर सकें
वर्ग-पहेली जिसे न हम
हल कर सकें

कोई मन को ऐसा उलझाने लगा ।