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लपका साल / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
लपका साल जेन्हें एैलेॅ
घर-घर ख़ूब पटाखा छूटलै,
संकल्पोॅ के होतै साल नया
जन जीवन होतै नया नया,
जे बितलै सब बीती गेलै
बुरी आदत के नै पड़तै साया।
माय सरोसती के पूजा करवै
जन मन में ज्ञानोॅ के दीप जलैबै,
मन से पढ़ि-लिखी केॅ दुनिया में
मानव धरमोॅ के अलख जगैबेॅ।
बड़का के करबै सम्मान हम्में
नै करबै केकरो अपमान हम्में,
प्रेम-स्नेह हमरोॅ सम्बल होतै
करबै देशोॅ के निर्माण हम्में।
हमरोॅ प्यारोॅ न्यारोॅ भारत देश
रक्षा करिहोॅ बाबा शेष, महेश,
शुभ दिन देखी एैलेॅ छै ई साल
शुभ ही रहतै दुनिया के हाल।