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लहर / नीना कुमार
Kavita Kosh से
समुन्दर की लहरों का क्या ये ही फ़साना<ref>कहानी</ref> है
साहिल<ref>किनारा</ref> तक पहुँचना और फ़ना<ref>ख़त्म हो जाना</ref> हो जाना है
सागर पर रवाँ<ref>चलना</ref> तो हैं, पर गहराई ना जानें
चलते हैं सतह पर के सतह पे ये ज़माना है
हवाओं से मिल जायेगी रफ़्तार है, लेकिन
ऊंचाई क्या पानी है, यह तह को बताना है
हासिल क्या है, मीलों सफ़र, करना है क्यों
आखिर में तो ख़ाक-ए-साहिल<ref>किनारे की मिट्टी</ref> को पाना है
लहर ख़त्म हो जाए मगर आब<ref>पानी</ref> रह जाए के
फिर नया सफ़र करेंगें, नई लहर बनाना है
लहरों का सिलसिला ये, यूँ चलता रहेगा
सागर ही है ठौर,<ref>जगह</ref> 'नीना' ये ही ठिकाना है
शब्दार्थ
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