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लहू किसका? / जनकवि भोला
Kavita Kosh से
सोचता था,
मुझे फिर से सोचना पड़ रहा है
कारण,
मेरे समक्ष मौत जो खड़ी है,
दिन रात सदा भूख के रूप में
जिसे चाहता हूं खत्म करना
हर राह चुनी नाकामयाब रहा
मिली है आजादी संघर्ष कर रहा हूं
एक सोच है यही
कविता कर रहा हूं
बह रहा है आज लहू किसका
यही प्रश्न कर रहा हूं