भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लारै रैवण री जूण / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काल थारै काळ हो
आज म्हारै काळ है
पैलां थूं आगै
अर म्हैं लारै हो
आज म्हैं आगै अर थूं लारै
बगत-बगत री बात है
थूं खेती मांय
हळ दांई जुत्यां रेयौ
म्हैं बणग्यो नेता
अबै थूं लारै इज रैवैला
म्हारै घर मांय तो
तीसूं दिन दिवाळी रैवैला
क्यूंकै
आयै बरस
अकाळ है
थूं है
अर म्हैं हूं।
आगै म्हनै रैवणो है
रैसूं आगै
अर थूं लारै रैवण री
जूण लेय ‘र आयो है, रैसी लारै।