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लिंगडू की गठरियाँ / मनोज चौहान

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उस पहाड़ी और,
सर्पीली सड़क के,
हर मोड़ पर,
मकानों के झुरमुट,
के समीप से ,
जब भी गुजरती है,
कोई गाड़ी ,
नन्हें हाथ हर बार,
उठ जाते हैं ,
ऊपर की ओर ,
उठाये हुए ,
हाथों में ,
लिंगडू <ref>लिंगडू अर्थात लिंगड़ - यह हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में पाया जाने वाला फर्न कुल का एक पौधा है l
प्रदेश के पहाड़ों के नदी – नालों के आस – पास उगने वाले लिंगड़ की सब्जी को लोग खूब पसंद करते हैं l लिंगड का वानस्पतिक नाम पैट्रिडियम एक्यूलिन्यूम है l अमेरिका में भी यह लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है तथा स्ट्रियूथियोपैट्रिस, फिडलहैड अथवा शुतुरमुर्ग फर्न के नाम से मशहूर है। </ref> की गठरियाँ |
मटमैले से कपडे पहने,
मगर चेहरे पर,
कोमल व निर्मल,
भाव लिए |

रूकती नहीं,
जब कोई गाड़ी ,
हताश हो जाते हैं वह ,
मगर फिर ,
लौट आती है ,
चमक ,
उन आँखों में ,
लगते ही ब्रेक,
किसी गाड़ी की |

दौड़ पड़ते हैं सभी ,
एक साथ,
और जब खरीद,
ली जाती है,
उनमें से,
जिस किसी की भी,
लिंगडू की गठरियाँ,
हर्षित हो उठते हैं वह |

यह छोटी सी जीत,
बढ़ा देती है,
उनका हौसला,
और जगा देती है उम्मीद,
भविष्य में कुछ बड़ा,
और बेहतर
कर देने के लिए |

वह थमा देंगे,
कमाई किए चंद रुपये,
घर जाते ही,
माँ के हाथ में,
ताकि जुटाया जा सके,
जरुरत का सामान,
घर के लिए |

और छोटी पिंकी भी,
जोड़ रही है हिसाब,
ये सोचकर कि,
ले लिया जाएगा उसे,
अब नया बस्ता ,
स्कूल जाने के लिए |

मगर नहीं लौटेगी घर ,
अभी वह,
अपने साथियों के ,
बगैर,
जोकि खड़े हैं अब भी,
गढ़ाए हुए नज़र,
दूर तलक,
सड़क के मोड़ पर |

आश्वस्त है वे भी,
कि रुकेगी फिर,
कोई गाड़ी,
और बिक जाएंगी,
उनके भी हाथों में,
थामी हुई,
लिंगडू की गठरियाँ

शब्दार्थ
<references/>