भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लेकिन / एरिष फ़्रीड / प्रतिभा उपाध्याय
Kavita Kosh से
पहले पहल डूब गया मैं प्यार में तुम्हारे,
आँखों की चमक में तुम्हारी,
हँसी में तुम्हारी,
तुम्हारी जिजीविषा में।।
अब प्यार है मुझे आंसुओं से भी तुम्हारे,
जीवन के प्रति डर से तुम्हारे,
और तुम्हारी आँखों की
बेबसी से।।
लेकिन डर में तुम्हारे,
चाहता हूँ मैं मदद करना तुम्हारी,
चूंकि जिजीविषा मेरी
है सदैव तुम्हारी आँखों की चमक में।।