भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोकतंत्र / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
मली हुई तंबाखू
होठ के नीचे दबाते हुए
उसने पूछा
अरे भाई! लोकतंत्र का मतलब समझते हो?
और सवाल ख़त्म होते ही
संसद की दीवार पर
पीक थूक दी
थोड़ी दूर पर
उसी दीवार को
टांग उठाये एक कुता भी गीला कर रहा था
लोकतंत्र का अर्थ
सदृश्य मेरे सामने था