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लोग करें कैसी मनमानी / विजय किशोर मानव
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लोग करें कैसी मनमानी
सर के ऊपर जाए पानी
रटी इबारत बांचें सुग्गे
ऐसी बदली बोली-बानी
बस्ती है या बूचड़खाना
पड़ती गरदन रोज़ कटानी
वही कुर्क करते हैं ख़ुशबू
जो देते पौधों को पानीद्य
झुग्गी पर चलते बुलडोज़र
मीनारों से मरती नानी
अनशन हो, हड़ताल हो कहीं
चैन कर रहे राजा-रानी
राजमार्ग की ओर जा रहे
कलाकार, कवि, पंडित, ध्यानी