लोग तुम्हारे वास्ते..... / सर्वत एम जमाल
लोग तुम्हारे वास्ते
पलकें बिछाते हैं 
मुस्कुराते हैं
कभी-कभी
आकाश के तारे भी
तोड़ लाने की बात करते हैं
सिर्फ़ इसलिए 
कि तुम ख़ुश रहो
उन पर 
अपनी पसंदीदगी की 
मुहर लगा दो
और तुम 
ऐसा करते भी हो ।
तुम्हारा मिलने-जुलने का दायरा
कुछ बढ़ता जा रहा है
लेकिन जो घट रहा है
उसकी कल्पना कभी कि है तुमने?
तुम इस पृथ्वी के 
एक निरीह प्राणी थे
अब भी हो
लोग तुम्हे आकाश बना चुके हैं
और तुम 
लोगों के कहने पर 
अपनी पहचान 
भूल गए हो ।
कब तक ?
फिर कोई नवागंतुक 
लोगों के वोट
अपनी तरफ़ करके
तुम्हे तुम्हारे सही स्थान पर
वापस पहुँचा देगा ।
उस पल
तुम्हे
सहानुभूति या सान्त्वना
देने वाला भी नहीं मिलेगा ।
मेरी बात छोड़ो
मैं आज भी
उसी मोड़ पर 
जहाँ तुम मुझे छोड़कर 
आकाश-यात्रा पर गए थे,
जमीं पर अपने पाँव
मजबूती से टिकाए
खड़ा हूँ ।
इस प्रतीक्षा में
कि शायद
कभी तुम नीचे आओ
तो स्वयं को
अकेला न पाओ
 
	
	

