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लोना ने कहा था / राकेश कुमार पटेल

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आज की सर्द सुबह में लिहाफ में लेटे हुए
मैने पूछा माँ से
क्या ‘लोना’ अब भी आते हैं
सर्दियों के दिन में अपनी झोलियाँ टाँगे
अपने मजबूत कंधों पर
और बड़बड़ाते हुए बांचते रहते हैं
बच्चों का भविष्य??

माँ अगर मेरे बचपन वाला
लोना आ जाये तो उससे जरूर पूछना
कि उसे हमारे बारे में
कैसे पता होता है इतना कुछ
कैसे वो हमारे चेहरे को पढ़कर
बता देते हैं हमारा आगम

उसकी कही हुई हर बात
बार-बार एक सच की तरह
टकराती रहती है मुझसे
उसने मुझे शाप दिया था या आशीर्वाद
नही पता मुझे

हां मुझे याद है
उसने मांगा था कुछ खाने को
या भीख में मुट्ठी भर अनाज
और हम नाराज हो गए थे उसके बडबडाने पर

उसने कहा था
बेटा तुम बहुत बड़ा साहब बनेगा
नहीं बर्दाश्त करेगा किसी की झाड़-ताड़
अपने घर नही रह सकेगा
तरसेगा बच्चा तू अपने घर आने को

मुझे याद है
फकीर भी जाड़ों की सुबह में
लगाते थे फेरियां
और दिन भर वसूलते थे अनाज
लेकिन उन्होंने कभी कुछ नही कहा

बसहा बैलों के गले मे ढेरों टँगी घण्टियों को
बजाते हुए आते थे योगी भी कई
लेकिन उन्होंने भी कुछ नही कहा
हमारे भविष्य के बारे में

पहाड़ी लड़के तो बस
नेपाली स्वेटर और हींग बेचकर चले जाते थे
ठंड में सिकुड़ते हुए बेचारे
जिन्हें चिढाते थे सब
‘ए पहाड़ी लोई-लाई
चिल्लर काटे टोई-टाई’

मैंने माँ से कहा कि अगली बार
जब भी कोई लोना आये अपने गांव में
उसे बुलाना, रोटी भी देना और पूछना
कैसे जानता था वह इतना कुछ
मेरे बारे में

उसने कहा था तो
मैं बड़ा साहब भी बन गया
लड़ता भी रहता हूँ बार-बार
क्योंकि किसी का ताव बर्दाश्त नहीं होता मुझसे
बेघर खानाबदोश फिरता रहता हूँ
तरसता रहता हूँ अपने घर लौटने को
मां से मिलने को ।

लोना फिर से आएंगे जरूर
हमे बहुत कुछ बताने
क्योंकि बर्फ बहुत गिरी है इस बार
हवाएं बहुत सर्द हो चली हैं
कुहरा भी घना है
फसलें फिर भी हरी हैं खेतों में
सम्भाले हुए हैं खुद को
सारी मुश्किलों के बावजूद।