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लोरी / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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कौवा करै छै काँव-काँव
कुत्ता भूकै छै झाँव-झाँव
नून चलेॅ पाँव-पाँव
सूती रहोॅ यही ठाँव।

पापा घुम्हौ गाँव-गाँव
रुकी-रुकी गाछी छाँव
बच्चा करै छै हाँव-हाँव
सूती रहोॅ यही ठाँव।

माय एत्हौं सांझेॅ-सांझे
खिलौना लान्तहौं झनाझन?
नूनू खेलतै दनादन
सूती रहोॅ यही ठाँव।