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लौटूंगा जरूर / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
कहना
मेरे सपनों में
बार-बार जगते
चेहरों को
मेरे ख्वाबों में रहते
शहरों गलियों, घरों को
अचेतन में बसते
मेरे रहबरों को
कहना-
मैं लौट कर आऊंगा
एक दिन
आऊँगा लौट कर
तुम्हारे चेहरों से
अपनी अतीत की परछाईयों से
मुलाकात करने
धुंधला रहे नयन नक्शों के साथ
दिल की सांझी बात करने
तुम्हारे साथ बिताए दिनों में
धीरे से झाँकने
आऊँगा शरूर
आऊँगा शरूर
वक्त के
चक्रव्यूह में से निकलकर
इस अन्धी दौड़ में से
कुछ पल निकालकर
गले में पड़ा
मजबूरियों का फंदा उतारकर
आऊँगा शरूर
इस से पहले
कि यादों का लहलहाता
वृक्ष सूख जाए
उम्र के मानसरोवर में से
साँसों का पानी
रूठ जाए
उनको कहना-
लौटकर आऊँगा जरूर...।