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लौट आ ओ धार / शमशेर बहादुर सिंह
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लौट आ ओ धार
टूट मत ओ साँझ के पत्थर
हृदय पर
(मैं समय की एक लंबी आह
मौन लंबी आह)
लौट आ, ओ फूल की पंखड़ी
फिर
फूल में लग जा
चूमता है धूल का फूल
कोई, हाय।