वक्त आया जलाओ दीये / हरिवंश प्रभात
वक्त आया जलाओ दीये प्यार के
नफरतों के अंधेरे खतम कीजिए,
जश्न आज़ादी का इस तरह दिल में हो
गम हैं तेरे या मेरे खतम कीजिए।
पेश करने की बातें तरीके गलत
हर किसी को भी बातें गवारा नहीं,
भुक्तभोगी हुए हम तो इतिहास के
ऐसा इन्साफ हो फिर दुबारा नहीं,
बस छलावे में जीवन बसर हो रहा
और ज़मीनी हकीकत खतम कीजिए।
धरती वीरों से खाली नहीं होती है
यह पता तो परिंदों को तूफान को,
लाल किले पर झंडा फहरता रहे
और सुरक्षा कवच भी हो मेहमान को,
आँखों में ले नमी आज इंसानियत
दूरियाँ जो दिलों की खतम कीजिए।
जो मिथक थे सभी गुत्थियाँ बन गये
जो विवादित रहे मूर्तियां बन गये,
जो भी परिवार का बोझ ढो ना सके
वो चिताओं पर चढ़ अस्थियाँ बन गये,
कर्ज़ अपना निभाने का यह वक्त है
रक्त देकर भी दहशत खतम कीजिए।
जितना आगे बढ़े, बढ़ना आगे बहुत
जितने पत्थर हटे, आगे पर्वत खड़ा,
जोश में क्या कमी, हौसलों से कहो
सोच पुख्ता अगर हो कर्त्तव्य बड़ा,
जब सलामी शहीदों को संगीन से
फिर तिरंगे की तड़पन खत्म कीजिए।