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वन के निर्जन में / ईवा लिसा मान्नेर
Kavita Kosh से
हिरणी सी मूरख हूँ
पानी में अपनी छाया जो देखती
और सोचती है कि वह डूब गई है
क्या सोचती है वह इसके सिवा?
दूसरी ही हिरणी देखती हो पानी में
ज़्यादा फ़र्क नहीं
मुझे वही बन जाना चाहिए जो मैं हूँ
नकि वह जो सोचती हूँ कि मैं हूँ
या वह जो बन जाना चाहती हूँ
न वह जो तुम हो
और हैं
यह मेरा बनना
निर्वस्त्र होना है धीरे-धीरे
वस्त्रों के अपने व्यक्तित्व को छोड़ना
ऐसे किनारे पर जो है सबके लिए
और तैरना
तैरना चाहिए उस पार तक हमेशा ही मुझे
दूसरे छोर तक
देख चुकी हूँ एक बार
अनाम होने वाले अपने लबादे को
सपाट चट्टान तक जो उठा
और कभी न लौटने के लिए
लुप्त हो गया वन के निर्जन में
अँग्रेज़ी से अनुवाद : हेमन्त जोशी