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वरण संकर जनम / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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पाप केर फैलत ही कुल केर देवियां हो।
पर पति पिरीति लगैतैय हो सांवलिया॥
पिरीति लगैतैय बरनसंकर उपजैतैय रामा।
जे माई बाप के नरक पठैतैय हो सांवलिया॥
भाद्ध-तरपन सक बंद होई जैतैय रामा।
गिरी परतैय सरग से पितर हो सांवलिया॥