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वरेण्य / सुरेन्द्र डी सोनी

बीस बरस तक
गर्म रेत पर सुलाकर
ठूँसते रहे
अपना जिस्म मुझमें -
अब कहते हो
कि मैं रेगिस्तान हूँ...

राख होने तक
झेलूँगी तुम्हें...
मैंने तुम्हारा वरण किया है
तुम्हारे झूठ का नहीं !