बीस बरस तक
गर्म रेत पर सुलाकर
ठूँसते रहे
अपना जिस्म मुझमें -
अब कहते हो
कि मैं रेगिस्तान हूँ...
राख होने तक
झेलूँगी तुम्हें...
मैंने तुम्हारा वरण किया है
तुम्हारे झूठ का नहीं !
बीस बरस तक
गर्म रेत पर सुलाकर
ठूँसते रहे
अपना जिस्म मुझमें -
अब कहते हो
कि मैं रेगिस्तान हूँ...
राख होने तक
झेलूँगी तुम्हें...
मैंने तुम्हारा वरण किया है
तुम्हारे झूठ का नहीं !