भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्षा-पूर्व / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
आज छायी है घटा
काली घटा !
महीनों की
तपन के बाद
अहर्निश
तन-जलन के बाद
हवाओं से लिपट
लहरा उठा
ऊमस भरा वातावरण-आँचर !
किसी ने
डाल दी तन पर
सलेटी बादलों की
रेशमी चादर !
मोह लेती है छटा,
मोद देती है घटा,
काली घटा !