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वर्ष नव चुपचाप आया / रेनू द्विवेदी
Kavita Kosh से
प्रियजनों को पास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
हर तरफ उल्लास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
सूर्य की किरने धरा पर
प्रेम का रस घोलती हैं।
और कानों में हवाएँ
कुछ न कुछ तो बोलती हैं।
प्यार का पल ख़ास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
हर तरफ उल्लास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
अनगिनत अब स्वप्न वसुधा
पर पुन: पलने लगे हैं।
फिर पुराने पात वृक्षों
से स्वत: झरने लगे हैं।
इक नयी-सी आस लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
हर तरफ उल्लास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
चहुँ दिशाओं में घुली है
प्यार की इक रागिनी सी।
मन हुआ अब चाँद जैसा
धड़कने हैं चाँदनी सी।
श्वास में नव श्वास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।
हर तरफ उल्लास लेकर
वर्ष नव चुपचाप आया।