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वसन्त के बारात / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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जैना शिशिर के जाय के ताकोॅ मेॅ
बैठलोॅ रहेॅ उल्लास के संगीत
आरो शिशिर की गेलै
सबसेॅ पहिलेॅ सुग्गैं देलकै सनेश
वसन्त के आवे के
खोड़र मेॅ बैठी केॅ नै
धरती आरो सरंग के बीच
आपनोॅ संगीत गुंजैतेॅ हुएॅ
टें, टें, टें।

तबेॅ चुप केना बैठतियै मैना
अपनोॅ महीन आवाज सेॅ
गाँव-गाँव केॅ बताय देलकै
वसन्त बारात लैकेॅ आवी रहलोॅ छै।

ई सुनी केॅ पपीहौं कहलकैं ‘हों’
हारिलो कहलकै ‘हों’
आरो जानेॅ कहाँ नुकेलोॅ
भौरौं कहलकै-
झुट्ठे बात थोड़े छेकै
बसन्त बारात लै केॅ
आवी नै रहलोॅ छै,
बारात तेॅ द्वार लागी गेलोॅ छै।