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वहाँ से आगे बढ़कर कैलास पर्वत के / कालिदास
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गत्वा चोर्ध्वं दशमुखभुजोच्छ्वासितप्रस्थसंधे:
कैलासस्य त्रिदशवनितादर्पणस्यातिथि: स्या:।
श्रृङ्गोच्छ्रायै: कुमुदविशदैर्यो वितत्य स्थित: खं
राशीभूत: प्रतिदिनमिव त्र्यम्बकस्याट्टहास:।।
वहाँ से आगे बढ़कर कैलास पर्वत के
अतिथि होना जो अपनी शुभ्रता के कारण
देवांगणनाओं के लिए दर्पण के समान है।
उसकी धारों के जोड़ रावण की भुजाओं से
झड़झड़ाए जाने के कारण ढीले पड़ गए हैं।
वह कुमुद के पुष्प जैसी श्वेत बर्फीली
चोटियों की ऊँचाई से आकाश को छाए
हुए ऐसे खड़ा है मानो शिव के प्रतिदिन के
अट्टहास का ढेर लग गया है।