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वही हो नाव वही हो धारा / गुलाब खंडेलवाल

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वही हो नाव वही हो धारा
पर क्या अगली बार न होगा सुंदर और किनारा !

छूटें भी जो रत्न बटोरे
मोती जिनमें जलधि हिलोरे
पर मन के कागज़ भी कोरे
होंगे सभी दोबारा !

संचित ज्ञानराशि जीवन की
यह नित-विकसित छवि चेतन की
लय होगी लपटों में तन की !
श्रम निष्फल है सारा !

गत जन्मों के तप जो जागे
बढ़ते क्या न रहेंगे आगे
जब तक मन विश्राम न माँगे
पाकर परस तुम्हारा

वही हो नाव वही हो धारा
पर क्या अगली बार न होगा सुंदर और किनारा !