भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
चुम्बन में
आलिंगन में
मर्दन में
रमण में
पारंगत वह
रसभरी परिपक्व रूपाम्बरा।
फिर भी
झिझक भरी
संकोच भरी
लाज भरी
अबोध प्रिया है वह
रूपाभा से दमकती युवती वह।
रचनाकाल :1990