Last modified on 11 मई 2010, at 13:45

वह आदमी कुछ नहीं बोलता / गोविन्द माथुर

वह आदमी कुछ नहीं बोलता
रहता है एक दम चुप
सुनता है सब की
वह पैदा हुआ है केवल सुनने के लिए

सारे आदर्श ढोने है उसे
देश की अखंडता का भार है उस पर
नैतिकता ढूँढी जाती है उसमे
ईमानदार होना है केवल उसे

अशिक्षित और निरीह
बने रहना है उसे
ताकि देश के कर्णधार
राजनीतिज्ञ ,पूंजीपति और विद्वान
दिखा सके उसे राह
वह पैदा हुआ है केवल राह देखने के लिए

धर्म और जातिवाद से ऊपर
उठ कर जीना है उसे
सामाजिक कुरूतियों से लड़ना है
गर्व करना है अपनी भाषा पर
देश की अस्मिता और संस्कृति को
बचाना है केवल उसे
क्योंकि वह एक महान देश का
आम नागरिक है।