वह हामिद था / कौशल किशोर
कई बार हम देखते हैं
उम्र छोटी होती है
पर उसके काम बड़े होते हैं
जैसे 'ईदगाह' का हामिद
वह था तो बच्चा
पर उसकी संवेदनाएँ बड़ी थीं
वह गाँव से इतनी दूर आया था मेले में
रंग-बिरंगे खिलौने उसे रिझाते
अपनी ओर खींचते
उसका बाल-मन उन पर अटक जाता
अन्दर वेगवती नदी बहने लगती
पर जैसे ही उसकी भोली नजर चिमटे पर पड़ी
मन के सारे तरल भाव वाष्प बन उड़ने लगे
उसकी आंखें चुम्बक-सी चिमटे से जा चिपकी
उसे याद आई दादी
उनका रोटी बनाना,
उसकी सारी क्रिया
जैसे अंगीठी से तवा को उतारना
आग में रोटी को सेंकना
फिर तवा को अंगीठी पर चढ़ाना
इस क्रिया को बार-बार दुहराना
और यह सब करते
हाथ की अंगुलियों का जल जाना
दादी का तड़प उठना
सारे दृश्य उसके सामने सजीव हो उठे
वह लौट रहा था मेले से
गांव की ओर
खुश-खुश
उछलता-कूदता,
हंसता-खिलखिलाता
चिमटे को तलवार की तरह नचाता
वह बना लेता उसे कभी हॉकी स्टिक
तो कभी बल्ला
वह रख लेता कंधे पर गदा की तरह
उसका बचपन लौट आया था उसके अन्दर
अंग-अंग से फूट रही थी मस्ती
बेखौफ बाल-हँसी
वह हामिद था
और यही उसका अपराध था
बाबरी से दादरी तक
जिन्होंने रौंदी हैं इस धरती को
जो नरसंहार के इस खेल का
कर रहे हैं विस्तार
उन्हीं की अदालत में मुकदमा पेश था
प्रेमचंद भी उनके कठघरे में थे
उनसे भी सवाल था
कि क्यों नहीं उन्हें कर दिया जाय
साहित्य से बेदखल?
उनके ख्लिाफ भी गंभीर अरोप थे
कि उन्होंने क्यो लिखी कहानी 'ईदगाह'
लिखना ही था तो वे लिखते कथा अयोध्या की
राजा रामचन्द्र की विजय गाथा लिखते
हामिद गुनाहगार था
हामिद ने मेले से चिमटा चुराया था
हामिद चोर था
हामिद के खिलाफ खुफिया रिर्पोट थी
हामिद के कश्मीर से कनेक्शन थे
हामिद पत्थरबाजों में देखा गया था
हामिद के तार विदेशों से जुड़े हैं
हामिद देश के लिए खतरा है
हामिद को पेड़ न बनने दिया जाय
वे ही पेशकार थे
वे ही हाकिम हुक्काम थे
वे ही वकील थे
वे ही मुनसिफ थे
वे ही न्यायधीश थे
उन्हीं की अदालत थी
और हामिद के साथ जो हुआ
उसे सारे देश ने देखा
कि जिस चिमटे को
उसने बड़े प्रेम से खरीदा था
और जो इसी का प्रतीक था
उसे ही उतार दिया गया उसके जिस्म में
जहाँ बेखौफ बाल-हँसी थी
वहाँ ठहाके की गूँज थी
हामिद मारा गया
नहीं, नहीं, हामिद नहीं मारा गया
मारी गई संवेदनाएँ
हत्या हुई भाव-विचार की
जो हमें हामिद से जोड़ती हैं
जो हमें आपस में जोड़ती हैं
जो हमें इन्सान बनाती हैं
जो हमें हिन्दुस्तान बनाती हैं।