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वामियनों के देश में प्रेम / राकेश पाठक

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ऐ सुनो !
नए हो? नहीं?
हाथ में चमकती पन्नियों में
क्या है तेरे पास?
दिखाओ?
लाल गुलाब!
मार दिए जाओगे
काट दिए जाओगे
टाँग देंगे तुझे
हदीस का हवाला देकर
सरेआम!
देश में उसेमाओं उल्लेमाओं ने
लोगों के हाथों में लाल कटारें थमा रखी हैं
रक्तरंजीत!
प्रेम है इन्हें सिर्फ अदम से
वहशीपने से, सनकीपना से
वन, बन्दूक, तलवारों से
इल्म है इन्हें इत्लाफ़ से केवल
जाओ, भागो यहाँ से
प्रेम का गुलाब!

अमन का आंदोलन!
प्यार की ख़ुशबू!
बंद है "वामियानो" के देश में !
"बजरंगियों" के देश में!
"दमनकारियों" के देश में!

हाँ,
जानता हूँ भाई
तो क्यों आये हो मरने?

मरने नहीं !
मारने आया हूँ

मुल्क के अबाबिलों को
इन लाल गुलाबों से
इनकी मादक सुगंध के नशे में
कहाँ रह पायेगा प्रेम का काफ़िर कोई?
खेतों में लहलहाता गुलाब चाहता हूँ
फूलों का मुस्काता मिज़ाज चाहता हूँ
प्रेम में रीता भींगा तन-मन चाहता हूँ
पग-पग दिखता अमन चाहता हूँ

अच्छा!
तुम सपने बेचते हो?
बेचोगे यहाँ?
दुकानें बंद है सपनों की यहाँ
मोटी हदीस के जंज़ीरों से
जालों का संसार है यहाँ वर्षों से

सपने देखोगे
तो चाक दिए जाओगे
ख़ाक कर दिए जाओगे
अंतिम बार कहता हूँ
चले जाओ यहाँ से

सन्नाटा
एक शान्ति
रोज़-रोज़ मरने से अच्छा है-
आज मर जाना काफ़िर बनकर
सपने और प्रेम की ख़ातिर!