विद्या-दान का प्रताप / मुंशी रहमान खान
बिस्मिल्लह कहिकर प्रथम सुमिर पाक अल्लाह।
पढ़ दुरूद दश भेजिए नाम रसूलिल्लाह।। 1
सुनहु मोमिनों गौर से तमगा केर बयान।
यह अजगैबी मदी से दीन्ह पदक युलियान।। 2
लिखा शास्त्रन में सही विद्या का परमान।
अन्न-दान विद्या अभय महादान ये जान।। 3
उजरत विद्या की कभी इक कौड़ी नहीं लीन्ह।
और गरीबन बालकन पुस्तक वस्तर दीन्ह।। 4
यह फल विद्या दान का तिरपन बरस मैं कीन्ह।
आज खुदा ने श्रेष्ठ पद रहम करम कर दीन्ह।। 5
हुक्म खुदा के शाह ने दया रंक पर कीन्ह।
लेतरकेंदखस्वर्ण पद मोहिं अता कर दीन्ह।। 6
स्वर्ण पदत दूजो दियो मिल सुन्नुतुल जमात।
यह वरकत है दान की की विद्या खैतरात।। 7
अमूल्य पदक ये आज तक भए न काहु नसीब।
है कुदरत रब पाक की भूपति दया अजीब।। 8
नहीं मलाजिम नहीं धनी नहीं बनिज व्यापार।
लघु विद्या लख रंक की कृपा कीन्ह सरकार।। 9
मानना लाजिम है हमें शुक्र खुदा का आज।
अरु आशीश दें शाह को युलियान गरीब निवाज।। 10
दोहा
बिस्मिल्लह कहिकर प्रथम सुमिर पाक रब नाम।
लघु कविता सेवक कहै छोड़ मोह मद काम।। 1
जिन प्यारे श्री लार्ड को करुँ प्रणाम कर जोर।
ईश क्वीन का यश कहूँ सुनहिं आप सिरमौर।। 2
क्षमियो लेख में भूल हो आप गरीब निवाज।
कृपा दृष्टि नीत राखियो तुम रक्षक महाराज।। 3