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विद्रोह / असंगघोष
Kavita Kosh से
मैंने
अपनी लेखनी से
तेरे खिलाफ
विद्रोह का बीज
बो दिया है
जिन्दगी भर
इसे सींचता रहूँगा मैं
जब वह रक्तबीज
पल्लवित हो
विशाल वृक्ष बनेगा
उस समय तक
कहाँ रहूँगा मैं,
मेरी पीढ़ियाँ उसकी
हिफाजत करती रहेंगी
लेकिन तब भी
मेरी लेखनी
जरूर जिन्दा रहेगी
तुम्हारे खिलाफ
विद्रोह का डंका लगातार
बजाती हुई।