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वियोगिनी की काम दशा, संकल्‍प / कालिदास

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शेषान्‍मासान्विरहदिवसस्‍थापितस्‍यावधेर्वा
     विन्‍यस्‍यन्‍ती भुवि गणनया देहलीदत्‍तपुष्‍पै:।
मत्‍सङ्ड़्गं वा हृदयनिहितारम्‍भमास्‍वादयन्‍ती
     प्रायेणैते रमणविरहेष्‍वङ्गनानां विनोदा:।।

वियोगिनी की काम दशा, संकल्‍प -
अथवा, एक वर्ष के लिए निश्चित मेरे
वियोग की अवधि के कितने मास अब शेष
बचे हैं, इसकी गिनती के लिए देहली पर
चढ़ाए पूजा के फूलों को उठा-उठाकर भूमि
पर रख रही होगी। या फिर भाँति-भाँति के
रति सुखों को मन में सोचती हुई मेरे मिलने
का रस चखती होगी।
प्राय: स्‍वामी के विरह में वियोगिनी
स्त्रियाँ इसी प्रकार अपना मन-बहलाव किया
करती हैं।