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विरल होते जा रहे / नईम

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विरल होते जा रहे संवाद के पल,
विरल होते जा रहे ये पेड़-जंगल।

इस सदी के मुसलसल, जी हाँ मुसलसल,
हादसे हैं, हैं नहीं संयोग केवल।
रोज की ताज़ा ख़बर ये सुर्खियों में-
कहीं पर बैनर हुए तो कहीं लेबल।

सृष्टि की नायाब कृति इस आदमी को-
बचा रह जाए सुरक्षित तनिक भूतल।

आदमी ही क्यों अकेला, ये चराचर,
हैं अगर वो कहीं पर अनुरक्त होंगे,
मात्र सत्ता ही नहीं वातावरण में,
मौन भाषा ही सही, अभिव्यक्त होंगे;

राह में रोड़ा बनी सत्ता व्यवस्था-
प्रगति का हर चरण कर जाता अमंगल।

आदमी की इयत्ता संवाद से है
और सत्ता आदमी की जंगलों से,
खो न जाए इन घनी आबादियों में
अन्यथा हो जाएँगे हम कंगलों-से;

बने रहने दो हमारे भ्रम सलोने-
बचे रहने दो हमारे हिये वत्सल।

विरल होते जा रहे संवाद के पल
विरल होते जा रहे ये पेड़-जंगल।