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विवश / मोहन साहिल
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					रोया नहीं मैं इसलिए 
घोर विपत्ति में भी
हँसते रहना जरूरी है 
मैंने पलकें समेटकर 
फैला दिए हर बार होंठ 
और हँस पड़ा इस विवशता पर 
मेरी बूढ़ी माँ बिना दाँतों के खिलखिलाई 
बच्चों ने मारे प्रसन्नता के 
कलाबाज़ियाँ खाईं 
पत्नी ने मेरे गाल पर काला निशान लगाया 
और मित्र गले मिलकर 
ठहाके लगाने लगा 
मैं बहुत दिनों से 
एकान्त ढूँढ रहा हूं।
 
	
	

