भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: <poem>'''काठ की आलमारी में किताबें''' (एक) एक काठ की आलमारी में बहुत सारी …
<poem>'''काठ की आलमारी में किताबें'''

(एक)


एक काठ की आलमारी में
बहुत सारी किताबें हैं
किताबों में बहुत सारे पन्ने
पन्नों पर वाक्यों का मुहल्ला
मुहल्ले में अनन्त विचार
विचारों में भावों का समुन्द्र
यानि एक-एक पृथ्वी बन्द है
एक-एक किताब में

किताबें बन्द हैं
काठ की आलमारी में
और आलमारी घर के
ऐसे कोने में पड़ी है
जहाँ सूरज की रोशनी
नहीं पहुँच पाती

एक दिन गल जाएगी काठ की आलमारी
आलमारी मे कैद सारी किताबें
किताबों में जीवित वाक्यों के मुहल्ले
मौत का ताण्डव होगा महा भयानक
लेकिन कहीं कोई खबर नहीं होगी

इस खबर से बेखबर
अगली पीढ़ी को पता भी नहीं चलेगा कि
जहाँ टीवी और कम्प्युटर रखें हैं
वहाँ कभी किताबों से भरी आलमारी हुआ करती थी।

(दो)

बच्चे पढ़ रहे हैं
हमारा देश महान था
धरती सोना उगलती थी
भाषा की जड़े हृदय से निकलकर
रगों में दौड़ती थीं
संस्कृति आकाश की तरह
तनी हुई थी समाज पर

यह सुनकर बेचैन हैं
काठ की आलमारी में बन्द किताबें
बार-बार पन्ने फड़फड़ारहीं हैं
इन्तजार कर रहीं हैं
किसी स्वतन्तत्रता दिवस पर उन्हें
सामूहिक माफी दी जाएगी
इन किताबों को

तब फिर से पढ़ेंगे बच्चे
हमारा देश महान है
धरती सोना उगलती है
भाषा की जड़े हृदय से निकलकर
रगों में दौड़ती है
संस्कृति आकाश की तरह
तनी हुई है समाज पर ।



</poem>
155
edits