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ईश्‍वर / हरिवंशराय बच्चन

17 bytes removed, 18:49, 14 दिसम्बर 2010
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
  उनके पास घबाकर घर-बार है, 
कार है, कारबार है,,
 
सुखी परिवार है,
 
घर में सुविधाएँ हैं,
 
बाहर सत्‍कार है,
 
उन्‍हें ईश्‍वर की इसलिए दरकार है
 
कि प्रकट करने को
 उसे फूल चढ़ाएँ, डाली दें।दें ।
उनके पास न मकान है
 
न सरोसामान है,
 
न रोज़गार है,
 ज़रूर, बड़ा परिवार है;भीतर तनाव है, 
उन्‍हें ईश्‍वर की इसलिए दरकार है कि
 
किसी पर तो अपना विष उगलें,
 किसी को तो गाली दें।दें ।
उनके पास छोटा मकान है,
 
थोड़ा सामान है,
 
मामूली रोज़गार है,
 
मझोला परिवार है,
 थोड़ा काम, थोड़ा फुरसात फुरसत है, 
इसी से उनके यहाँ दिमाग़ी कसरत है।
ईश्‍वर है-नहीं है,
 
पर बहस है,
 
नतीज़ा न निकला है,
 
न निकालने की मंशा है,
 
कम क्‍या बतरस है!
</poem>
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