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Kavita Kosh से
हमारी राख में शायद शरारा और है कोई
अभी तक तो वही शिद्दत हवाओं के जूनून जुनूँ में है
अभी तक झील में शायद शिकारा और है कोई
मैं बाहर के मनाज़िर से अलग हूँ इसलिए' आलम 'मेरे अंदर कि की दुनिया में नजारा नज़ारा और है कोई
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