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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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तू जो मुझसे प्यार करता, तू जो मेरा यार होता
मेरी आशिक़ी का चर्चा, भी न बेशुमार होता

मुझे जो न होती चाहत कोई करता क्यों हुकूमत
मेरे दिल पे दर-हक़ीक़त तेरा इक़तिदार होता

मेरे शहर वाले, मेरी भला क्यों हँसी उड़ाते
मेरा दामने-मुहब्बत, जो न तार-तार होता

जो किए थे तुमने वादे, वो सभी जो तुम निभाते
दिलो-जाँ से तुमपे सारा, ये जहाँ निसार होता

तेरा शुक्रिया के तू ने, मुझे ठोकरों पे रक्खा
मेरी आरज़ू थी तेरे, मैं गले का हार होता

तेरे बाद सारी दुनिया, तुझे याद करके रोती
जो 'रक़ीब' तू न होता, जो वफा-शियार होता
</poem>
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