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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : नये साल की पहली सुबहशीत लहर<br> '''रचनाकार:''' [[नीलाभविजेन्द्र]]</td>
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होते हैं, रहते सावधान जीवन जीना है
उनको अपने से ही, ऐसी व्याकुलता जगती
है मन में, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपती
है, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैं, पीना है
अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता है
भद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारी, कहाँ सताता
पाला उनको, दाता उनका है, शास्त्र बताता
है-- खरपतवारों के मध्य फूल कहाँ खिलता है ।
फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगी
हड्डी-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी ।
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