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सृष्टि-सृष्टि से।
किंतु चेतना के अर्जन से
‘होने’ और ‘न होने’ पर भी
अमिट प्रभाव पड़ा है;
प्रकृति
चेतना से अनुकूलित होते-होते
मानवबोधी
चेतन सृष्टि हुई है
यह लौकिक मानव की
प्रियतम सिद्ध हुई है
परम अलौकिकता से
उसको मुक्ति मिली है।
द्वन्द्व और संघर्ष निरंतर चला करेगालौकिक मानवलौकिक जीवन जिया करेगा। मुक्ति और निर्वाण नहीं है। नाश और निर्माण हैप्राण और निष्प्राण है। चेतन रहकर जीने में कल्याण है,एकमात्र बसयही सत्य-संज्ञान है। रचनाकाल: १११८-१-१९९२
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