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|रचनाकार=चाँद हादियाबादी
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दिल में अक्सर मेहमाँ बन के आता है
पूछ न मुझसे क्या रिश्ता क्या नाता है

मैंने उसको उसने मुझको पहन लिया
क्या पहरावा यह दुनिया को भाता है

उस के दिए गुलाब में काटें भी होंगे
ध्यान ज़ेहन में आते जी घबराता है

दिल के ज़ज्बे सच्चे हों तो रोने से
आँख का हर आंसू मोती बन जाता है

चाँद अकेला लड़ता है अंधियारों से
सुबह तलक वो तन्हा ही रह जाता है</poem>