भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नीचे यह महामौन की सरिता
::::दिग्विहीन बहती है ।
 
यह बीच-अधर, मन रहा टटोल
प्रतीकों की परिभाषा
आत्मा में जो अपने ही से
::::खुलती रहती है ।
 
रूपों में एक अरूप सदा खिलता है,
गोचर में एक अगोचर, अप्रमेय,
पुरुषों के हर वैभव में ओझल
::::अपौरुषेय मिलता है ।
 
मैं एक, शिविर का [प्रहरी, भोर जगा
अपने को मौन नदी के खड़ा किनारे पाता हूँ :
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits