|रचनाकार=दाग़ देहलवी
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ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा<br>{{KKCatGhazal}}ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा<br><brpoem>
अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा<br>सब ने जाना जो पता एक ने जाना ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा<br><br>
तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है<br>किस के उजड़े हुए अपने दिल में है को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा<br><br>सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा
आरज़ू ही न रही सुबहे वतन की मुझको <br>तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती हैशामे ग़ुरबत किस के उजड़े हुए दिल में है अजब वक़्त सुहाना ठिकाना तेरा<br><br>
ये समझकर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है आरज़ू ही न रही सुबहे-वतन<brref>स्वदेश की सुबह</ref> की मुझकोकाम आता है बुरे वक़्त में आना तेराशामे-गुरबत<brref>परदेस की शाम<br/ref>है अजब वक़्त सुहाना तेरा
ये समझकर तुझे ऐ दिले शेफ़्ता में आग लगाने वाले <br>मौत लगा रक्खा है रंग लाया काम आता है ये लाखे का जमाना बुरे वक़्त में आना तेरा<br><br>
तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासहे नादाँ मेरा <br>
क्या ख़ता की जो कहा मैंने न माना तेरा<br><br>
रंज क्या वस्ले अदू का जो तअल्लुक़ ही नहीं <br>ऐ दिले शेफ़्ता में आग लगाने वाले मुझको वल्लाह हँसाता रंग लाया है रुलाना ये लाखे का जमाना तेरा<br><br>
काबा ओ देर में या चश्म ओ दिलेआशिक़ में <br>तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासहे नादाँ मेरा इन्हीं तीन-चार घरों में है ठिकाना क्या ख़ता की जो कहा मैंने न माना तेरा<br><br>
तर्के आदत से मुझे नींद रंज क्या वस्ले अदू का जो तअल्लुक़ ही नहीं आने की <br>कहीं नीचा न हो ऐ गौर सिरहाना मुझको वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा<br><br>
मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंजेफ़िराक़ क़ाबा-ओ-दैर<brref>वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरामंदिर-मस्जिद<br/ref>में या चश्मो-दिले-आशिक़<brref>आशिक़ केदिल की आँख</ref> मेंइन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा
बज़्मे दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है <br>
इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा<br><br>
अपनी आँखों में अभी कून्द गई बिजली सी <br>तर्के आदत से मुझे नींद नहीं आने की हम कहीं नीचा न समझे के ये आना है या जाना हो ऐ सिरहाना तेरा<br><br>
यूँ वो क्या आएगा फ़र्ते नज़ाकत से यहाँ <br>मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंजेफ़िराक़ सख्त दुश्वार वो ये कहते हैं बड़ा दिल है धोके में भी आना तवाना तेरा<br><br>
बज़्मे दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा अपनी आँखों में अभी कून्द गई बिजली- सी हम न समझे के ये आना है या जाना तेरा यूँ वो क्या आएगा फ़र्ते नज़ाकत से यहाँ सख्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा दाग़ को यूँ वो मिटाते हैं, ये फ़रमाते हैं<br>
तू बदल डाल, हुआ नाम पुराना तेरा
</poem>
{{KKMeaning}}